वाराणसी। बीते डेढ़ साल से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे युद्ध से भारी जानोमाल का नुकसान हुआ है। अस्पताल और स्कूलों तक पर सैन्य कारवाई हो रही है। वहीं वहां के बच्चे बम व बारूदों के साए में भूखे पेट रह रहे हैं। वहीं आंकड़े कह रहे हैं कि गाजा में 90 प्रतिशत बच्चे एक बार से अधिक भोजन नहीं कर पा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि यदि तत्काल सहायता नहीं पहुंचाई गई, तो अगले 48 घंटों में 14,000 बच्चों की जान जा सकती है। वहीं साझा संस्कृति मंच ने कहा कि हम हिन्दोस्तानी है और घर आए मेहमान को खाना खिलाने वाले संस्कारों के है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ बोलकर हम पूरी दुनिया को अपना घर बतलाते रहे हैं।
विश्व शांति की भावना हमारी प्रतिदिन की प्रार्थना का हिस्सा रहा है। वहीं गाजा को रोजाना कम से कम 500 मदद के ट्रकों की जरूरत है। जबकि इजरायल फिलहाल केवल 5 से 10 ट्रकों को ही प्रवेश की अनुमति दे रहा है। ऐसे में गाजा की स्थिति हर दिन बदतर होती जा रही है, इजराइल-गजा की लड़ाई के बीच बेचारे बच्चे भूख से क्यों मरें? एक बार सोच कर देखें बच्चे तो बच्चे होते हैं, उनका क्या दोष ?
अभी हम भारत पाकिस्तान के बीच एक युद्ध की स्थिति से गुजरे हैं। सोचकर सिहरन होती है की युद्ध की गोली, बम, मिसाइल बच्चों को निशाना बनाते तो ? आगे मंच के पदाधिकारियों ने कहा कि हम और आप, कुछ लोग, उनके लिए कुछ बड़ा नहीं कर सकते। न हम युद्ध रोक सकते हैं, न राजनीति बदल सकते हैं। लेकिन हम चुप नहीं रह सकते।
इसलिए गांधी की राह पर हम एक दिन का उपवास रख रहे हैं। ये उपवास उस पीड़ा को अपने भीतर उतारने की एक कोशिश है जिसे गाजा के बच्चे हर रोज जी रहे हैं। हम चाहते हैं कि इस उपवास को देखकर दुनिया की अंतरात्मा जागे। नेताओं को शर्म आए, इंसानियत की नींद टूटे। हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि वह गाजा के इस संकट को तत्काल संबोधित करे।
नेहरू जी की गुट-निरपेक्ष नीति के अनुरूप, भारत को संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर तत्काल युद्धविराम और निर्बाध सहायता आपूर्ति की माँग को और मजबूती से उठाना चाहिए। हम माँग करते हैं कि भारत सरकार भोजन, दवाइयाँ और चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अंर्तराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करे, ताकि गाजा के बच्चों को बचाया जा सके।
हमारा देश, जिसने उपनिवेशवाद और शोषण के खिलाफ संघर्ष किया, इस त्रासदी को अनदेखा नहीं कर सकता। नेहरू जी ने कहा था, ‘शांति केवल युद्ध की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि न्याय और समानता की उपस्थिति है।’