Bihar Assembly Election: सुप्रीम कोर्ट से विपक्ष को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मामले की सुनवाई करते हुए मतदाता सूची संशोधन (SIR) प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है। राजद सांसद मनोज झा, गैर सरकारी संगठन ADR समेत कई याचिकाकर्ताओं ने चुनाव पर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग का यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 14,19,21,325 और 326 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और उसके रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टोर्स रूल 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट निर्वाचन आयोग के इस कदम पर रोक लगाए।
मुस्लिम, दलित और पिछड़ों को टारगेट किया गया – राजद सांसद मनोज झा ने कहा था कि SIR संस्थागत रूप से वोट डालने के अधिकार से वंचित करने का एक जरिया है। इसका इस्तेमाल वोटर लिस्ट के अपारदर्शी संशोधनों को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है। इसके टारगेट में मुस्लिम, गरीब, दलित व पिछड़े हैं।
उन्होंने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया न सिर्फ जल्दबाजी बल्कि गलत समय पर की गई है, इसका असर करोड़ों वोटर्स को मताधिकार से वंचित करने और उनके संवैधानिक मताधिकार से वंचित करने का है।
चुनाव आयोग का मनमाना फैसला – ADR ने कहा कि अगर चुनाव आयोग को नहीं रोका गया तो बिना उचित प्रक्रिया के मनमाने ढंग से लाखों मतदाताओं को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा। इससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कमजोर होगा, जोकि संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। याचिका में कहा गया है कि इसमें जिस तरह उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर कम समय में जो दस्तावेज मांगे गए हैं। उससे लाखों वास्तविक मतदाता, वोटर लिस्ट से बाहर हो जाएंगे।
पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नगारिकों पर डाल दी – NGO ने अपनी याचिका में कहा कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान पत्र को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों पर नकारात्मक असर डालेगी।
संस्था ने कहा कि मतदाताओं के लिए न सिर्फ अपनी नागरिकता साबित करने के लिए, बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज पेश करने होंगे। चुनाव आयोग का यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है। चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण को लागू करने के लिए अव्यवहारिक समय सीमा निर्धारित की है, विशेषकर निकट में नवंबर 2025 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों को देखते हुए। ADR ने कहा है कि ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं था। जिनके पास विशेष सघन पुनरीक्षण आदेश में मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं।
क्या है SIR, जानिए चुनाव आयोग का तर्क – चुनाव आयोग ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण का उद्देश्य मतदाता सूची में पात्र नागरिकों के नाम जोड़ना और अपात्र मतदाताओं को बाहर करना है। बिहार में इससे पहले SIR साल 2003 में किया गया था। चुनाव आयोग ने तर्क दिया कि कई मतदाताओं की मृत्यु की जानकारी अपडेट नहीं हुई है। अवैध प्रवासियों की पहचान जरूरी है।