Shravan Monday Special 2023: जहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह, अब बना वेडिंग डेस्टिनेशन का हॉट स्पॉट
जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई॥ गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी॥
भावार्थ : वेदों में विवाह की जैसी रीति कही गई है, महामुनियों ने वह सभी रीति करवाई। पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकडक़र उन्हें भवानी (शिव पत्नी) जानकर शिवजी को समर्पण किया। (रामचरित मानस)
त्रेता युग में भगवान शिव और माता पार्वती ने जिस अग्निकुंड के फेरे लेकर विवाह किया था, अब वह स्थान वेडिंग डेस्टिनेशन बन गया है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले का त्रियुगीनारायण मंदिर में विवाह के लिए लोग महीनों पहले बुकिंग कराने लगे हैं।
मंदिर परिसर में अगले साल मार्च, 2024 तक 25 विवाहों की बुकिंग अभी से हो चुकी है। इस साल अब तक 50 से अधिक विवाह हो चुके हैं। यहां 2022 में 101 जोड़े परिणय सूत्र में बंधे थे। मान्यता है कि त्रियुगीनारायण मंदिर में शिव-पार्वती के विवाह की साक्षी बनी अग्नि आज भी प्रज्ज्वलित है।
इसी कारण मंदिर को अखंड धूनी मंदिर भी कहा जाता है। इसी अग्निकुंड के फेरे लेकर जोड़े परिणय सूत्र में बंधते हैं। रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर सोनप्रयाग से 13 किलोमीटर दूर त्रियुगीनारायण मंदिर में भगवान शिव और पार्वती की विवाह से जुड़े साक्ष्य मौजूद हैं।
अग्निकुंड की राख ले जाते हैं दंपती - मंदिर में आने वाले दंपती अग्निकुंड की राख अपने साथ ले जाते हैं। लोगों का मानना है कि इस राख को घर में रखने से वैवाहिक जीवन सुखमय गुजरता है। यहां लोग अग्निकुंड में लकड़ी का दान करते हैं।
त्रियुगीनारायण मंदिर के करीब 5 किलोमीटर दूर गौरी कुंड है। इसी स्थान पर माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। त्रियुगीनारायण मंदिर जाने वाले लोग गौरी कुंड भी जाते हैं। गौरी कुंड केदारनाथ जाने के लिए आधार शिविर है।
यहां इन हस्तियों का हुआ विवाह - 1. उत्तराखंड के मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, 2. एफआइआर फेम टीवी अभिनेत्री कविता कौशिक, 3. दो दिल एक जान फेम अभिनेत्री निकिता शर्मा, 4. अभिनेता जितेंद्र असेड़ा, 5. आइएएस दंपती ललित मोहन रयाल-रश्मि रयाल, 6. आइपीएस अधिकारी अपर्णा गौतम।
ब्रह्मशिला पर होती है रस्में - मंदिर परिसर में ब्रह्मशिला पर विवाह की रस्में पूरी की जाती है। माना जाता है कि इसी शिला पर भगवान शिव और पार्वती के विवाह की रस्में हुई थीं। इस विवाह में भगवान ब्रह्मा ने पुरोहित और भगवान विष्णु ने पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। तीन युगों के प्रतीक और नारायण को समर्पित इस मंदिर के कारण इस क्षेत्र को त्रियुगीनारायण कहा जाता है।
शादी के लिए कराना होता है पंजीकरण - तीर्थ पुरोहित समिति के सचिव सर्वेश्वरानंद सेमवाल ने बताया कि त्रियुगीनारायण में विवाह के लिए तीर्थ पुरोहित समिति में पंजीकरण कराना होता है। इसके लिए 1100 रुपए शुल्क निर्धारित है। शुल्क से मंडप में बैठने की व्यवस्था की जाती है। मंदिर में कलश भी समिति की ओर से दिया जाता है।