MCD Elections में आम आदमी पार्टी की जीत के सियासी मायने को समझिए

 
Understand the political meaning of Aam Aadmi Party's victory in MCD Elections
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अब यह स्पष्ट हो चुका है कि दिल्ली से उठी आम आदमी पार्टी, एमसीडी फतह के बाद दिल्ली में अब और अधिक मजबूत हो चुकी है। यदि यहां के 7 संसदीय सीटों की बात छोड़ दें तो यहां की तीन राज्य सभा सीटों, दिल्ली विधानसभा और एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है।

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी की जीत के कतिपय खास सियासी मायने हैं, जो भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और समाजवादी अथवा क्षेत्रीय आधार वाली क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर चुके हैं।

इस चुनाव परिणाम ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय राजनीतिक क्षितिज पर आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उभरते सियासी कद से जहां भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक चुनौती बढ़ने वाली है, वहीं कांग्रेस के सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो चुका है, क्योंकि उसका तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और मध्यममार्गी वोट बैंक अब पूरी तरह से आम आदमी पार्टी की ओर शिफ्ट हो चुका है।

यही नहीं, यदा कदा दिल्ली नगर निगम की चुनावी राजनीति में सिर उठाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) तो अब बिल्कुल साफ हो चुकी है।

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आपको पता है कि दिल्ली का मतलब होता है लघु भारत यानी मिनी इंडिया। यहां जो कुछ होता है, उससे देर-सबेर पूरा भारत प्रभावित होता है। इसलिए यहां पर पिछले एक दशक में आम आदमी पार्टी को जो मजबूती मिली है, उससे इस बात के प्रबल आसार हैं कि एक राजनीतिक पार्टी के रूप में देश भर में उसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी।  दिल्ली के बाद पंजाब की सत्ता मिलना इस बात की पुष्टि करता है।अब उसकी चर्चा गोवा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, उत्तरप्रदेश और हरियाणा में भी हो रही है।

भले ही दिल्ली को दिल वालों का शहर कहा जाता है, लेकिन यहां होने वाली राजनीतिक दिलग्गियां भी किसी से छुपी हुई नहीं हैं। कहना न होगा कि जिस समय देश की राजनीति में कांग्रेस का डंका बज रहा था और दिल्ली की सूबाई सत्ता पर वह पन्द्रह सालों से काबिज थी, नवगठित आम आदमी पार्टी ने अपने मुखिया अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में उसे वर्ष 2013 में सत्ता से बाहर कर दिया।

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उन्होंने यहां पर कांग्रेस और बीजेपी का सुफड़ा साफ कर स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई, जो आजतक चल रही है। बता दें कि कांग्रेस से पहले दिल्ली की सूबाई सत्ता पर बीजेपी ही काबिज थी।

और अब लगभग 9 साल बाद एमसीडी चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी ने पिछले 15 साल से दिल्ली नगर निगम की सत्ता पर काबिज बीजेपी को ठिकाने लगाकर स्पष्ट बहुमत से कुछ अधिक सीट हासिल कर चुकी है।

खास बात यह कि जब देश और दुनिया में बीजेपी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की सियासत और चुनावी प्रबंधन का डंका बज रहा है, तब आप नेता अरविंद केजरीवाल द्वारा बीजेपी को नगर निगम जैसे स्थानीय निकाय के चुनाव में सियासी धूल चटा देना बहुत बड़ी बात है।

क्योंकि आपको पता है कि एमसीडी को बचाने के लिए बीजेपी ने तीन हिस्सों में विभाजित दिल्ली नगर निगम का एकीकरण किया, चुनाव में रणनीतिक विलम्ब करवाई, लेकिन पहले से ही चुनावी ताल ठोक रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी को अल्टीमेटम देकर से एमसीडी  में मात दे दी, जो कि बहुत बड़ी बात है। यहां की 250 सीटों में से आप को 134, बीजेपी को 104, कांग्रेस को 9 और निर्दलीय को 3 सीटों पर जीत हासिल हुई है।

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अब यह स्पष्ट हो चुका है कि दिल्ली से उठी आम आदमी पार्टी, एमसीडी फतह के बाद दिल्ली में अब और अधिक मजबूत हो चुकी है। यदि यहां के 7 संसदीय सीटों की बात छोड़ दें तो यहां की तीन राज्य सभा सीटों, दिल्ली विधानसभा और एमसीडी पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है।

हां, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आज यह बात जरूर खल रही होगी कि भले ही उन्होंने कांग्रेस की तरह ही बीजेपी को हराने का अपना ख्वाब पूरा कर लिया, लेकिन जिस तरह से दिल्ली विधानसभा में वह कांग्रेस का सुफड़ा साफ करने में सफल रहे थे, वैसी उल्लेखनीय सफलता एमसीडी चुनाव में उन्हें बीजेपी ने नहीं मिलने दी। बीजेपी ने 7 मुख्यमंत्री एमसीडी चुनाव में उतारे थे, इसलिए उसकी इज्जत बच गई।

यानी कि बीजेपी ने भी तगड़ी फील्डिंग करते हुए उन्हें और अधिक रन बनाने नहीं दिया। आपको याद होगा कि पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में भी आप नेता अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस का सुफड़ा साफ करते हुए वहां अपनी पार्टी को दो तिहाई बहुमत दिलवाकर भगवंत सिंह मान की सरकार बनवाई। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी एमसीडी चुनाव जितवाने में अपनी सारी ताकत झोंक रखी थी, क्योंकि दिल्ली में पंजाब और चंडीगढ़ के ढेर सारे लोग रहते हैं।

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गौरतलब है कि एमसीडी चुनाव परिणाम का असर अब आम चुनाव 2024 की रणनीतिक तैयारियों के अलावा हरियाणा चुनाव 2023 पर भी पड़ेगा। दिल्ली के बाद पंजाब पर आप के कब्जे ने यह जाहिर कर दिया है कि निकट भविष्य में बीजेपी का मुकाबला आप से ही होगा। यहां पर आप का मतलब आप के नेतृत्व में बनने वाले अखिल भारतीय राजनीतिक गठबंधन से है।

क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने मौका पड़ने पर समाजवादी, दलितवादी या क्षेत्रीय आधार वाले राजनीतिक दलों से मंच साझा जरूर किया है, लेकिन उन्हें अपना नेता मानने का संकेत कभी नहीं दिया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से जुड़े राजनीतिक घटनाक्रम इस बात की गवाही देते आये हैं।

यदि सबकुछ ठीक ठाक रहा तो 2024 में पीएम मोदी का मुकाबला सीएम अरविंद केजरीवाल से हो जाये तो कोई हैरत की बात नहीं होगी, क्योंकि रणनीतिक रूप से चाहे  कांग्रेस हो या अन्य क्षेत्रीय दल, वो आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की सियासी जिद्द के मुकाबले कहीं नहीं टिकते!

आम आदमी पार्टी के कई नेता यह दावा भी कर चुके हैं कि साल 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल होगा। बता दें कि कांग्रेस काफी कमजोर हो चुकी है। लिहाजाइ लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला करने के लिए आम आदमी पार्टी ही देशभर में अपने आपको को तैयार कर रही है।

भले ही केजरीवाल के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू प्रमुख नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री व टीआरएस प्रमुख केसीआर यानी के चन्द्रशेखर राव आदि जैसे कई नेता भी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की दौड़ में हैं।

इसलिए अब देखना यह होगा कि क्या संयुक्त विपक्ष केजरीवाल के नेतृत्व में काम करने को राजी होगाया फिर आम आदमी पार्टी अकेले ही भाजपा को चुनौती देने हेतु मैदान में उतरेगी। खैर हाल-फिलहाल तो आम आदमी पार्टी की यह बढ़त भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजने जैसी है।

एमसीडी चुनाव परिणाम पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि "लोगों ने मुझे दिल्ली की सफाई, भ्रष्टाचार को दूर करने, पार्क को ठीक करने के साथ कई सारी जिम्मेदारियां दी हैं। मैं दिन रात मेहनत करके कोशिश करूंगा कि आपके इस भरोसे को कायम रखूं।"

वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री और आप नेता भगवंत मान ने कहा है कि "लोग अब नफ़रत की राजनीति नहीं चाहते हैं। लोग स्कूल, अस्पताल, बिजली और सफाई की राजनीति चाहते हैं। इसलिए अब दिल्ली के कूड़े के पहाड़ साफ होंगे।"

आप के दोनों मुख्यमंत्रियों की बातों से स्पष्ट है कि भाजपाई हिंदुत्व, कांग्रेसी धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी सामाजिक न्याय और क्षेत्रीय दलों की स्वार्थपरक एजेंडे से इतर आम आदमी पार्टी लोगों की मौलिक जरूरतों की पूर्ति करने वाली राजनीतिक करेगी, जिसमें फ्री बिजली, पानी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और सफाई जैसे मुद्दे शामिल होंगे। कहना न होगा कि ये ऐसे लोकोपयोगी मुद्दे हैं जो कांग्रेस-बीजेपी की पूंजीवादी राजनीति का दम घोंट सकते हैं।

एमसीडी चुनाव परिणाम बीजेपी और आप के बीच चल रहे आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति को दिल्ली से हटाकर कुछ अन्य राष्ट्रीय या क्षेत्रीय मुद्दों की तरफ शिफ्ट होंगे। क्योंकि आरोप दर आरोप लगाकर ही केजरीवाल सरकार अब तक अपने राजनीतिक इरादों में पूरी तरह से सफल होती आई है।

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इसलिए अब वह गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तरप्रदेश समेत अन्य राज्यों या राष्ट्रीय मुद्दों को हवा देगी। इसमें उसे मीडिया का भरपूर साथ मिलेगा, क्योंकि मोदी सरकार अपनी चहेती मीडिया के अलावा मीडिया माध्यमों के अन्य बड़े हिस्से का उपेक्षा करती आई है, जो कि उसपर दिल्ली में भारी पड़ती आई है। ऐसा इसलिए कि उपेक्षित मीडिया समूहों का जड़ दिल्ली में बहुत गहरा है।

बता दें कि अब तक आम आदमी पार्टी भाजपा शासित दिल्ली नगर निगम पर यह आरोप लगाती थी कि वह ठीक से काम नहीं कर रहा है और भ्रष्टाचार में लिप्त है। वहीं भाजपा का दिल्ली सरकार पर आरोप रहता था कि राज्य सरकार उसके फंड को रोक रही है। इसलिए अब यह राजनीति यही पर समाप्त हो जाएगी।

अब आप की फ्री पॉलिटिक्स में और इजाफा होने के आसार बढ़ गए हैं, क्योंकि दिल्ली नगर निगम चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत में मुफ्त बिजली और पानी दिया जाना एक बार फिर से काम कर गया है। क्षेत्रवार परिणाम दर्शा रहे हैं कि ऐसे इलाके जहां निम्न वर्ग के लोग ज्यादा रहते हैं, उन इलाकों में आम आदमी पार्टी को ज्यादा वोट मिले हैं।

इसके अलावा मुस्लिम आबादी की बहुलता वाले इलाकों में भी आम आदमी पार्टी को बड़ी संख्या में वोट मिले हैं। दिल्ली दंगों और सीएए के खिलाफ चले आंदोलन के बाद राजधानी में यह पहला चुनाव था और इसमें मुस्लिमों ने खुलकर आम आदमी पार्टी को वोट दिये। 

इस बात में कोई दो राय नहीं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत में पार्टी के स्थानीय नेताओं का भी काफी योगदान रहा है। क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो ज्यादातर समय गुजरात में चुनाव प्रचार में ही सक्रिय रहे थे।

वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अन्य मंत्रियों, पार्टी के विधायकों और अन्य राज्यों से आये मझे हुए कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर दिल्ली में चुनाव प्रबंधन संभाला और जबर्दस्त कामयाबी हासिल की। कहना न होगा कि दिल्ली नगर निगम चुनावों में मिली इस जीत के साथ ही आम आदमी पार्टी की चुनौतियां भी बढ़ने वाली है।

अब आम आदमी पार्टी को अपने वादों पर खरा उतर कर भी दिखाना होगा। क्योंकि फिलहाल दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है और यहां की मुख्य नदी यमुना भी बहुत मैली हो चुकी है, जिसे साफ करना और साफ रखना अपने आपमें एक बड़ी चुनौती है।

साभार - कमलेश पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार