Politics: अडाणी विवाद पर श्रीलंका के विदेश मंत्री ने जो कहा, उससे विपक्ष को नई ताकत मिलेगी

 
Politics: What the Sri Lankan Foreign Minister said on the Adani dispute will give new strength to the opposition
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श्रीलंका ने कहा है कि अडानी के शेयरों में हालांकि 140 बिलियन डॉलर का पतन हो गया है लेकिन उसे अडानी समूह की कार्यक्षमता पर पूरा भरोसा है। श्रीलंका शायद कहना चाह रहा है कि अडानी में उसका भरोसा इसलिए है क्योंकि भारत सरकार में उनका भरोसा है।

Politics: गौतम अडानी और हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मामले पर नए रहस्योद्घाटन लगभग रोज़ ही हो रहे हैं। इस बार का संसद का सत्र भी इसी मामले का शिकार होने वाला है, क्योंकि विपक्ष के पास इसके अलावा कोई बड़ा मुद्दा है ही नहीं। वैसे एक मुहावरे में कहा भी गया है कि ‘भागते भूत की लंगोटी ही काफी।’

 

अब अंग्रेजी के ‘हिंदू’ अखबार में श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी की एक भेंटवार्ता छपी है। उसमें साबरी ने दावा किया है कि श्रीलंका की सरकार के साथ अडानी के कोलंबो बंदरगाह और विद्युत परियोजना के जो सौदे हुए हैं, वे ऐसे ही हैं, जैसे कि दो सरकारों के बीच होते हैं। यह कथन बहुत मायने रखता है। पता नहीं, यह बोलते हुए साबरी को इस बात का ध्यान रहा या नहीं कि अडानी और हमारी सरकार के संबंधों को लेकर यहां बड़ा बावेला उठ खड़ा हुआ है।

 

Politics: What the Sri Lankan Foreign Minister said on the Adani dispute will give new strength to the opposition

 

साबरी ने श्रीलंका के इस भयंकर संकट के समय भारत द्वारा दी गई प्रचुर सहायता के लिए मोदी सरकार का बड़ा आभार माना है लेकिन उन्होंने मोदी और अडानी को एक-दूसरे का पर्याय बना दिया है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत के विपक्षी नेताओं को अब एक छड़ी हाथ लग जाए, जिससे वे मोदी सरकार पर प्रहार कर सकें। अभी तक तो हमारा विपक्ष सिर्फ अडानी की खाली तूती बजा रहा है, जिसका असर शेयर मार्केट पर तो पड़ा है लेकिन वह जनता के कानों में नहीं गूंज पा रही है।

श्रीलंका के विदेश मंत्री साबरी ने भी कहा है कि अडानी के शेयरों में हालांकि 140 बिलियन डॉलर का पतन हो गया है लेकिन उन्हें अडानी समूह की कार्यक्षमता पर पूरा भरोसा है। साबरी शायद कहना यह चाह रहे हैं कि अडानी में उनका भरोसा इसलिए है क्योंकि भारत सरकार में उनका भरोसा है।

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दूसरे शब्दों में भारत सरकार और अडानी को वे एक ही सिक्के के दो पहलू समझ रहे हैं। जैसा उत्साह श्रीलंका ने अडानी की परियोजनाओं के बारे में दिखाया है, वैसा ही उत्साह इस्राइल ने भी दिखाया है। हमारा विपक्ष इस्राइल से हुए अडानी के सौदे का प्रधानमंत्री की इस्राइल-यात्रा का ही परिणाम बताता है।

इस्राइल का हैफा बंदरगाह सामरिक दृष्टि से पश्चिम एशिया का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। अडानी ने उसे 1.2 बिलियन डॉलर में खरीद लिया है। इस तरह के कई सौदे अडानी समूह ने देश और विदेश में किए हैं।

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हमें देखना यह है कि क्या इन सौदों से भारत का कोई नुकसान हुआ है? यदि नहीं हुआ है तो विपक्ष द्वारा खाली-पीली शोर मचाने का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है। देश में आज तक एक भी सरकार ऐसी नहीं हुई है, जिसने भारतीय उद्योगपतियों के साथ पूर्ण असहयोग का रास्ता अपनाया हो।

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वे असहयोग करेंगी तो देश की हानि ही होगी। उनके सहयोग का वित्तीय फायदा उन्हें जरूर मिलता है। उसके बिना भी राजनीति चल नहीं सकती। यदि अडानी-समूह ने कोई कानून-विरोधी कार्य किया है या उसके किसी काम से देश या जनता की हानि हुई है तो वह दंड का भागीदार अवश्य होगा। यदि अडानी-समूह ने फर्जीवाड़ा किया है तो वह भुगतेगा लेकिन इसमें मोदी क्या करें? मोदी कुछ बोलते क्यों नहीं? मोदी की चुप्पी विपक्ष की आवाज को बुलंद कर रही है।

- साभार