Rajasthan Politics: कामयाब नहीं हो पाया 'अश्विनी' प्रयोग, फिर एक बार रानी ही होंगी 'महारानी'!
Rajasthan Politics: 4 मार्च यानी शनिवार का दिन राजस्थान का चुरू जिले में हुई जनसभा लोगों से खचाखच भरी नजर आई। दावा किया गया कि जनसभा में करीब 70 हजार लोग इकट्ठा हुए। ये विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधंरा राजे का शक्ति प्रदर्शन था। इस दौरान वसुंधरा की जय-जयकार के साथ केसरिया में हरा-हारा, राजस्थान में वसुंधरा और अबकी बार वसुंधरा सरकार जैसे नारे लगते नजर आए।
लेकिन इसके ठीक दो महीने बाद यानी मई के महीने में अशोक गहलोत के दावे ने राजस्थान की सियासत में खलबली पैदा कर दी है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 7 मई को दावा किया कि 2020 में जब उनकी सरकार को गिराने की साजिश हुई, तब पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे सिंधिया ने उनका साथ दिया था। उनकी मदद की बदौलत ही वह साजिश नाकाम की जा सकी थी।
गहलोत की राह क्यों नहीं है इतनी आसान - 5-5 साल में सरकार बदलने की कवायद राजस्थान में सालों से चलती आयी है। वहीं किसी भी सरकार के कार्यकाल के दौर को देखें तो पांच वर्षों के दौरान शुरू के 3-4 साल तो ठीक ठाक रहते हैं लेकिन आखिरी दौर में आंदोलन, घोटाला, पेपर लीक जैसी चीजें गहलोत हो या वसुंधरा दोनों के ही कार्यकाल के दौरान देखने को मिली हैं।
वहीं हर सरकार की तरफ से लोगों को लुभाने के लिए भी आखिरी वर्षों में योजनाओं की झड़ी लगाई जाती है, जैसा अभी अशोक गहलोत करते भी दिखाई दे रहे हैं। राजस्थान के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। एक तरफ तो इसे सचिन पायलट पर हमले के रूप में देखा जा रहा है तो वहीं वसुंधरा राजे को भी बीजेपी में असहज करने के प्रयास के तौर पर बताया जा रहा है।
लेकिन भैरों सिंह शेखावत से अबतक सीटिंग सीएम चुनाव में 25-40 सीटों के साथ विपक्ष में बैठते आये हैं। ऐसे में पायलट की बगावत, कांग्रेस की वर्तमान स्थिती को देखते हुए गहलोत की वापसी मुश्किल ही दिख रही है।
हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि जादूगर का जादू कांग्रेस में चलता ही रहेगा। इसमें गौर करने वाली बात ये है कि गहलोत जिसे बड़ा खुलासा समझ रहे हैं ये सारी बातें अमित शाह को पहले से ही पता थी। गहलोत पब्लिकली बता रहे हैं, उस समय अंदरखाने ये बात चल रही थी।
शेखावत पर भारी पड़ गया संजीवनी घोटाला? - राजस्थान बीजेपी में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में वसुंधरा राजे के अलावा लोकसभा स्पीकर ओम बिरला, केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, भूपेन्द्र यादव और राजवर्धन सिंह राठौड़ के नाम भी प्रमुखता से लिए जाते हैं। वहीं राज्य में वसुंधरा बनाम सभी के बीच मुकाबला है।
केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पहले सीएम चेहरे की रेस में कम से कम मीडिया की तरफ से तो जरूर आ रहे थे। शेखावत राज्य के टॉप 5 बीजेपी नेताओं में गिने जाते हैं। गहलोत 900 करोड़ के करप्शन के मामले में शेखावत को लगातार घेरते भी रहे हैं। राजस्थान में हुए 900 करोड़ के संजीवनी कोऑपरेटिव सोसायची घोटाले में पिछले कुछ महीने में जोधपुर, बाड़मेड़ और जालोर में 123 मुकदमे दर्ज हो हए।
इधर राजस्तान हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से एप्लिकेशन को स्वीकार करने से केंद्रीय मंत्री की मुश्किलें भी बढ़ती नजर आईं थी। ऐसे में संजीवनी घोटाला उनकी राह में बड़ी बाधा बन गया है। वैसे भी पीएम मोदी उस चेहरे पर दांव लगाने से परहेज ही करते आये हैं जिस पर कोई आरोप लगे हो वो भी खासकर भ्रष्टाचार का।
पायलट और अमीत शाह की हुई थी मुलाकात? - अमित शाह प्रकाश सिंह बादल की शोक सभा में गए थे। सूत्रों ने दावा किया कि वहां उनकी सचिन पायलट से मुलाकात हुई। फिर पायलट बाड़मेर में वीरेंद्र धाम छात्रावस का उद्घाटन करने गए। इस दौरान 15 एमएलए 4 मंत्री की भी मैजूदगी थी। राजनीतिक विश्लेषक मंत्रियों और विधायकों के जमावड़े को सचिन पायलट का शक्ति प्रदर्शन मान रहे हैं।
कार्यक्रम में बाड़मेर के पूर्व सांसद और बीजेपी कर्नल नेता सोनाराम चौधरी इसमें खासे मायने रखती है। ऐसे में पायलट का शक्ति प्रदर्शन अशोक गहलोत के लिए बड़ा झटका था। ऐसे हो सकता है कि इससे ध्यान हटाने के लिए उन्होंने ऐसा बयान दिया हो? जिसके पीछे की मंशा केंद्रीय नेतृत्व को बार-बार पायलट के पुराने गतिविधि की याद दिलाना भी हो सकता है।
अश्विनी वैष्णव को लेकर बात बन नहीं पाई, राजे पर भरोसा कायम - बीजेपी के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में एक और नाम मोदी सरकार के मंत्री अश्वनी वैष्णव का भी खूब आ रहा है। ब्राह्मण महापंचायत में अश्विनी वैष्णन बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे। वैष्णव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में कैबिनेट में शामिल किया था।
राजस्थान की आबादी में ब्राहम्णों का हिस्सा 7 से 7.5 फीसदी है। यहां अंतिम बार ब्राहम्ण समाज से मुख्यमंत्री 33 साल पहले बना था। हालांकि अश्विनी वैष्णव को बतौर अगला सीएम प्रोजक्ट करना काफी मुश्किल भरा कदम साबित हो सकता है। लोगों के बीच उनकी उतनी स्वीकार्यता भी नहीं है।
ऐसे में सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अश्वनी वैष्णव को लेकर वो बात नहीं बन पाई। बीजेपी के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में आगे रखकर लड़ा जा सकता है। इस बात की भी संभावना है कि फिर दो-ढाई साल बाद येदियुरप्पा की तरह उनकी जगह किसी और चेहरे को तरजीह मिल सकती है। इससे चुनाव में बगावत जैसी चीज भी नियंत्रण किया जा सकता है।