शहनाइयों की मधुर ध्वनि के बीच देवा मेला का शुभारंभ आज
प्रेम का प्रतीक है हाजी वारिस अली शाह का जीवन
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हर साल लगने वाला देवा मेला इस बार राजकीय शोक की वजह से दो दिन देर से शुरू हो रहा है। सुप्रसिद्ध गायक मीका सिंह चिंकी-मिंकी निजामी बंधु और अवधी गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी के कार्यक्रम से सांस्कृतिक संध्या सजेगी।
बाराबंकी। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह के वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह की याद में लगने वाले दस दिवसीय देवा मेला का शुभारंभ आज होगा। डीएम अविनाश कुमार की धर्मपत्नी प्रीती सिंह शहनाइयों और पीएससी बैंड की मधुर ध्वनि के बीच फीता काटकर शुभारंभ करेंगी। शांति के प्रतीक कबूतर भी उड़ाए जाएंगे।
राजकीय शोक के चलते इस बार मेला निर्धारित तिथि से दो दिन बाद प्रारंभ हो रहा है।
मेले में कवि सम्मेलन, मुशायरा जैसे पारंपरिक कार्यक्रमों के साथ ही सुप्रसिद्ध गायक मीका सिंह, चिंकी-मिंकी, निजामी बंधु और अवधी गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी के कार्यक्रम से सांस्कृतिक संध्या सजेगी।
इसके अलावा मानस कार्यक्रम में भजन गायक रविंद्र जैन के शिष्य, पंडित प्रेम प्रकाश दुबे के भजन तथा फूलों की होली व उमाशंकर महाराज द्वारा साईं भजन प्रस्तुत किया जाएगा।
सुचिता पांडेय का गीत-माला तथा यायावर रंग मंडल का हास्य नाटक ‘सब गोलमाल है’ एवं निधि श्रीवास्तव एवं उनके ग्रुप द्वारा लोक नृत्य प्रस्तुत किया जाएगा। नृत्यांजलि फाउंडेशन की प्रस्तुति कथक संध्या के साथ मेले का समापन होगा।
काफी स्थानीय कलाकार भी अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। मेले में दंगल, हाकी, बैडमिंटन, वालीबाल का आयोजन भी होगा। विभिन्न प्रांतों और जिलों के प्रसिद्ध सामानों के अलावा घरेलू जरूरत के सामानों के भी बाजार सजेंगे।
लंपी के चलते गाय-भैंस बाजार इस बार स्थगित है। वहीं, गधा बाजार में जानवरों की खरीद -बिक्री जारी है।
देवा मेला में आने और जाने वालों को बेहतर परिवहन सुविधा देने के लिए निगम ने पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। बाराबंकी में देवा मेला के लिए 45 बसें चलेंगी। वहीं, लखनऊ से आने वालों के लिए 40 बसों का संचालन होगा।
हालांकि, देवा बस अड्डे पर अब भी बारिश का पानी भर है।देवा मेला के दौरान प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं। प्रशासन की ओर से आने जाने वालों की परिवहन सेवा का विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
हमेशा की तरह लखनऊ से देवा मेला के लिए इस बार भी मेला स्पेशल बसें संचालित होंगी। लखनऊ स्थित अवध, कैसरबाग व आलमबाग और चारबाग बस अड्डों से दस-दस बसें देवा तक चलेंगी।
एसआरएम राजेश कुमार सिंह ने बताया कि बाराबंकी की ओर से देवा बस अड्डे तक कुल 29 बसें संचालित होंगी और फतेहपुर की ओर से आने वाली बसें 16 होंगी, जिनसे लोग देवा आ और जा सकेंगे।
यही नहीं, जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त बसों को भी चलाया जाएगा। देवा मेला के दौरान संचालित होने वाले बस अड्डे में बारिश का पानी भरा है, जिसे निकालने के लिए इंजन लगाए गए हैं। जल्द ही बस अड्डा पूरी तरह से संचालित होगा।
प्रेम का प्रतीक है हाजी वारिस अली शाह का जीवन
19वीं सदी के आरंभ में देवा की पावन भूमि पर वारिस रूपी महान सूफी संत का अवतरण हुआ। सूफी संत हजरत सैय्यद हाजी वारिस अली शाह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
उन्हें पैदाइशी वली (ऋषि) भी कहा जाता था। उनका जीवन त्याग, समर्पण और निश्छल प्रेम का प्रतीक था। ‘जो रब है वही राम है’ के माध्यम से उन्होंने समाज को ईश्वर के एक होने का संदेश दिया।
उनका प्रेम, सौहार्द और भाईचारे का संदेश आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। आज भी उनके आस्ताने पर आने वाले लाखों दीन-दुखी उनके करम से अपनी हर मुरादें पाते हैं।
महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह का जन्म हजरत इमाम हुसैन की 26वीं पीढ़ी में हुआ था। आपके पूर्वजों का ताल्लुक ईरान के निशापूर के सैय्यद वंश से था।
सूफी संत के एक पूर्वज ने बाराबंकी के रसूलपुर किंतूर में निवास किया। यहीं से एक बुजुर्ग अब्दुल अहद साहब देवा चले आए।
यहां उनकी पांच पीढियां बीतीं और हजरत सैय्यद कुर्बान अली शाह के पुत्र के रूप में सरकार वारिस पाक ने जन्म लेकर देवा की सरजमीं को पवित्र किया। सूफी संत की पैदाइश पहली रमजान को हुई थी।
बताते हैं कि आपने पैदाइश के दिनों में भी रोजा रखा था। उनमें बचपन से ही ईश्वरीय गुणों के दीदार होने लगे थे। बचपन में मिट्ठन मियां के नाम से जाने-जाने वाले हाजी वारिस अली शाह जब तीन वर्ष के थे तो उनके वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह का स्वर्गवास हो गया।
कुछ दिन बाद उनकी वालिदा का भी देहावसान हो गया। इसके बाद उनकी दादी साहिबा ने उनकी देखभाल की। उनके चचा सैय्यद मुकर्रम अली उनकी औलाद की तरह देखभाल करते थे।
पांच वर्ष की आयु में सूफी संत जब मकतब (पाठशाला) पहुंचे तो उनकी विलक्षण बुद्धि और प्रतिभा को देखकर उनके गुरु अचंभित थे। उन्होंने दो साल में ही कुरआन कंठस्थ कर ली।
सात वर्ष की आयु में सूफी संत के सिर से दादी साहिबा का भी साया उठ गया। इसके बाद उनके बहनोई हजरत हाजी खादिम अली शाह उन्हें अपने साथ लखनऊ ले गए और आगे की पढ़ाई उन्होंने वहीं की।
सूफी संत का ज्ञान ईश्वरीय देन था, जिसकी बदौलत अल्पकाल में ही वह अनेक पुस्तकों के ज्ञाता हो गए। बचपन से ही वह अन्य बालकों से जुदा और निस्वार्थ दया और सहानुभूति की अद्वितीय मिसाल थे। वारिस पाक अक्सर जंगल मैदान में जाकर ईश्वर के प्रेम में लीन रहते थे।
हजरत खादिम अली शाह की शिक्षा दीक्षा में वारिस पाक का कुछ ही समय व्यतीत हुआ था कि हजरत खादिम अली शाह ने नश्वर शरीर को त्याग दिया।
15 वर्ष की उम्र में वारिस पाक ने हज का इरादा किया। लोगों ने उन्हें अल्पायु और सफर की कठिनाइयों का स्मरण कराया, किंतु उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
इसके बाद उन्होंने अजमेर शरीफ उर्स में शिरकत करते हुए अपनी यात्रा शुरू कर दी। इस दौरान सरकार वारिस पाक ने 17 बार हज किया।
12 वर्ष की यात्रा में उन्होंने अरब, मिस्र, तुर्की सहित कई यूरोपीय देशों की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने लोगों को भाइचारे और सौहार्द का संदेश दिया।
उनके सूफी दर्शन के संदेश आज भी लोगों को सौहार्द और मोहब्बत का संदेश दे रहे हैं। एक सफर 1323 हिजरी तदनुसार छह अप्रैल 1905 को सुबह चार बजकर 13 मिनट पर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने दुनिया से पर्दा कर लिया।
उन्हें कस्बे में ही समाधि दी गई। उनके आस्ताना शरीफ पर आज भी देश-विदेश के लाखों जायरीन अपनी खिराजे अकीदत पेश करने आते हैं।