Amitabh Said In Ayodhya: अयोध्या पहुंचे अमिताभ बच्चन ने कहा - रहूं कहीं भी इमेज तो 'छोरा गंगा किनारे वाली' ही रही, अब तो यहां आना-जाना लगा ही रहेगा
Amitabh Said In Ayodhya: सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने राम की नगरी अयोध्या और यहां के लोगों से अलग ही अपनत्व भरा नाता जोड़ लिया। प्रशंसकों की उमड़ी भीड़ का अभिवादन स्वीकार करते हुए न सिर्फ जयश्रीराम का उद्धोष किया बल्कि बचपन में पिता हरिवंश राय बच्चन से सुनी अवधी कहावत का उल्लेख कर हर किसी का दिल भी जीत लिया।
शुक्रवार को अमिताभ अयोध्या में थे। यहां सिविल लाइन में एक ज्वेलरी शोरूम के उदघाटन के अवसर पर उन्होंने अपने चाहने वालों को निराश नहीं किया। उनसे संवाद कर आत्मीयता के साथ मन की बात की। बच्चन ने कहा कि 22 जनवरी को हम रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के पावन अवसर पर यहां आए थे, आज फिर आए हैं।
ऐसा मेरा मानना है कि अब अयोध्या आना-जाना निरंतर लगा रहेगा। महानायक ने अपने उत्साहित प्रशंसकों को संबोधित करते हुए कहा कि जब हम कई जगह जाते हैं तो वहां के लोग कहते हैं कि आप तो मुंबई में रहते हैं।
यहां आना-जाना नहीं होगा, ऐसे में कैसे आपके साथ ताल्लुक बढ़ाया जाएगा। चूंकि हमारी पैदाइश इलाहाबाद में हुई और उसके बाद हम दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में रहे। अपने बाबू जी (हरिवंश राय बच्चन) का जिक्र करते हुए अमिताभ ने बताया कि वे बचपन में बताते थे कि आपका ताल्लुक उत्तर प्रदेश से है।
साथ ही अवधी की एक कहावत हाथी घूमे गांव-गांव जेकर हाथी ओकर नाव सुनाया करते थे। ये सच है कि हम कोलकाता, दिल्ली और मुंबई में रहे लेकिन जहां कहीं भी रहे कहलाए गए 'छोरा गंगा किनारे वाला'।
महानायक अमिताभ बच्चन ने अयोध्या प्रवास के दौरान करीब ढाई घंटे का वक्त कमिश्नर गौरव दयाल के बंगले पर बिताया। यहां पहुंचने पर कमिश्नर ने उनकी अगवानी की। इस दौरान वह कुछ समय बाहर लॉन में धूप में बैठे तो थोड़ा समय अपनी वैनिटी वैन में भी बिताया।
काफी समय बंगले के भीतर ड्राइंग रूम में भी रहे। इस दौरान उन्हें दाल-रोटी और पूड़ी-सब्जी के साथ कुछ औैर पकवान परोसे गए लेकिन उनके विशेष आग्रह पर बनवाई गई साबुदाना की खिचड़ी ही उन्होंने बेहद चाव से खाई।
इसी कड़ी में प्रख्यात संगीत अध्येता और अयोध्या राज परिवार के सदस्य यतींद्र मिश्र ने उन्हें गुलजार पर लिखी अपनी पुस्तक भेंट की। आईजी प्रवीण कुमार ने अपनी कविताओं का संकलन दिया। जाते समय अमिताभ कमिश्नर दयाल को मुंबई आने का न्योता भी दे गए, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया।