Gyanvapi Mosque Case: ज्ञानवापी मामले में HC का बड़ा फैसला, जानिये क्यों होगा 'शिवलिंग' का साइंटिफिक सर्वे
Gyanvapi Mospue Case : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) को परिसर में पाए गए 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग करने की अनुमति दी है, संरचना को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाने का भी निर्देश दिया गया है। एएसआई द्वारा वाराणसी में मस्जिद परिसर के अंदर कथित रूप से पाए गए शिव लिंग की आयु का पता लगाने के तरीकों पर अपनी राय निर्दिष्ट करते हुए एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
कोर्ट ने परिसर में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच और साइंटिफिक सर्वे की मांग को लेकर दाखिल याचिका स्वीकार कर ली है और एएसआई को बिना क्षति पहुंचाए शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच करने का आदेश दिया है।
लाइव लॉ वेबसाइट के अनुसार एएसआई ने स्पष्ट रूप से कहा है कि शिव लिंग/लिंगम की प्रत्यक्ष डेटिंग संभव नहीं है और उम्र का पता केवल उन सामग्रियों की प्रॉक्सी डेटिंग से लगाया जा सकता है जो सीधे लिंगम की स्थापना से संबंधित हो सकते हैं, यदि कोई हो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक महत्व की वस्तु जैसे कि शिव लिंगम या उस मामले के लिए पत्थर से बनी कोई अन्य वस्तु या प्रतीक आदि के लिए, हमें आसपास के तलछट और वस्तुओं से तिथियां प्राप्त करनी होंगी। इस मामले में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कल ही सील बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट पेश की थी।
हिंदू पक्ष की महिलाओं की तरफ से याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में जिला जज के आदेश को चुनौती दी गई थी। पिछले साल मई में कोर्ट कमीशन की कार्यवाही के दौरान मस्जिद के वजूखाने से शिवलिंग बरामद हुआ था।
बताते चले कि वाराणसी के ज्ञानवापी में शिवलिंगनुमा आकृति मिलने पर विवाद लगातार जारी है। याचिकाकर्ता पक्ष ने शिवलिंगनुमा आकृति की कार्बन डेटिंग कराने की मांग की थी। शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर विवाद मामले में अहम फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के दौरान मिली शिवलिंगनुमा आकृति की कार्बन डेटिंग कराई जाए। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा की पीठ ने एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर शिवलिंगनुमा आकृति का साइंटिफिक सर्वे की जांच कराने का आदेश दिया।
कोर्ट ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग से कहा कि शिवलिंग को "बिना खंडित किए वैज्ञानिक जांच करें"। ऐसे में लोगों में इस बात को लेकर उत्सुकता है कि ये कार्बन डेटिंग होती क्या है और इस प्रक्रिया को कैसे पूरा किया जाता है।
क्या होती है कार्बन डेटिंग? - कार्बन डेटिंग उस विधि का नाम है जिसका इस्तेमाल कर के किसी भी वस्तु की उम्र का पता लगाया जा सकता है। इस विधि के माध्यम से लकड़ी, बीजाणु, चमड़ी, बाल, कंकाल आदि की आयु पता की जा सकती है।
यानी की ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, उनकी करीब-करीब आयु इस विधि के माध्यम से पता की जा सकती है। इसी कारण वादी पक्ष की चार महिलाओं ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे में मिली शिवलिंगनुमा आकृति की कार्बन डेटिंग या किसी अन्य आधुनिक विधि से जांच की मांग की है।
क्या होती है कार्बन डेटिंग की विधि? - दरअसल हमारी पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन के तीन आइसोटोप पाए जाते हैं। ये कार्बन- 12, कार्बन- 13 और कार्बन- 14 के रूप में जाने जाते हैं। कार्बन डेटिंग की विधि में कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच का अनुपात निकाला जाता है।
जब किसी जीव की मृत्यु होती है तब ये वातावरण से कार्बन का आदान प्रदान बंद कर देते हैं। इस कारण उनके कार्बन- 12 से कार्बन- 14 के अनुपात में अंतर आने लगता है।यानी कि कार्बन- 14 का क्षरण होने लगता है। इसी अंतर का अंदाजा लगाकर किसी भी अवशेष की आयु का अनुमान लगाया जाता है।
क्या पत्थर पर भी कारगर है कार्बन डेटिंग? - आम तौर पर कार्बन डेटिंग की मदद से केवल 50 हजार साल पुराने अवशेष का ही पता लगाया जा सकता है। पत्थर और चट्टानों की आयु इससे ज्यादा भी हो सकती है। हालांकि, कई अप्रत्यक्ष विधियां भी हैं जिनसे पत्थर और चट्टानों की आयु का पता लगाया जा सकता है। कार्बन डेटिंग के लिए चट्टान पर मुख्यत: कार्बन- 14 का होना जरूरी है। अगर ये चट्टान पर न भी मिले तो इस पर मौजूद रेडियोएक्टिव आइसोटोप के आधार पर इसकी आयु का पता लगाया जा सकता है।
1949 में हुई थी कार्बन डेटिंग की खोज - कार्बन डेटिंग के विधि की खोज 1949 में हुई थी। अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने इसका अविष्कार किया था। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 1960 में रसायन का नोबल पुरस्कार दिया गया था। कार्बन डेटिंग की मदद से पहली बार लकड़ी की उम्र पता की गई थी।
अब जान लीजिए विवाद और कार्बन डेटिंग के इस्तेमाल की वजह - ज्ञानवापी विवाद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इसके नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को तुड़वा दिया।
दावे में कहा गया है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर उसकी भूमि पर किया गया है जो कि अब ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है। कार्बन डेटिंग में अगर शिवलिंगनुमा आकृति उस समय के आसपास का पाई जाती है तो यह बड़ी कामयाबी होगी।