यरूशलेम। इजरायल से एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने पूरी दुनिया को, खासकर मिडिल ईस्ट पर नजर रखने वालों को सकते में डाल दिया है। बेंजामिन नेतन्याहू सरकार ने एक ऐसा फरमान जारी किया है जिसके तहत अब इजरायली सेना के खुफिया सैनिक और अधिकारी इस्लाम की शिक्षा लेंगे, कुरान पढ़ेंगे और अरबी भाषा सीखेंगे। यह फैसला उस देश में लिया गया है जहाँ हिब्रू मुख्य भाषा है और जिसका अपने पड़ोसी मुस्लिम देशों से दशकों पुराना संघर्ष है।

क्यों लिया गया यह चौंकाने वाला फैसला?

आखिर इजरायल को अचानक अपने सैनिकों को कुरान और अरबी पढ़ाने की जरूरत क्यों पड़ गई? इस फैसले के पीछे एक बड़ी और दर्दनाक वजह छिपी है – अक्टूबर 2023 का हमास हमला

इजरायली सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, यह माना जा रहा है कि 7 अक्टूबर का विनाशकारी हमला इजरायली खुफिया एजेंसियों, खासकर मोसाद की एक बड़ी विफलता का नतीजा था। रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि अगर खुफिया और सैन्य अधिकारियों को अरबी भाषा का गहरा ज्ञान होता, तो वे हमास की बातचीत और योजनाओं को समय रहते समझ सकते थे और शायद उस हमले को टाला जा सकता था। इसी खुफिया चूक से सबक लेते हुए अब यह अनिवार्य कर दिया गया है।

‘दुश्मन’ की भाषा, अब सबसे बड़ा हथियार!

इजरायल भौगोलिक रूप से मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है। जॉर्डन, तुर्की, सऊदी अरब, यमन और लेबनान जैसे पड़ोसी देशों की मुख्य भाषा अरबी है। ऐसे में इजरायल इस क्षेत्र में भाषाई रूप से अलग-थलग पड़ जाता है।

हालांकि, इजरायल के शीर्ष कमांडरों को अरबी का ज्ञान है, जिसका उपयोग वे दुश्मन की रणनीतियों को समझने के लिए करते हैं। लेकिन निचले स्तर के सैनिकों और अधिकारियों को भाषा न आने के कारण भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अब सरकार चाहती है कि सेना का हर खुफिया सैनिक दुश्मन की भाषा और उसकी सोच को समझने में सक्षम हो।

सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि सोच को समझने की कवायद

यह कदम सिर्फ अरबी भाषा सीखने तक सीमित नहीं है। सैनिकों को कुरान का अध्ययन करने का आदेश देना यह दर्शाता है कि इजरायल अब अपने विरोधियों की धार्मिक, सांस्कृतिक और वैचारिक जड़ों को समझना चाहता है। यह उनकी रणनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत है, जहाँ वे सैन्य ताकत के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक समझ को भी एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहे हैं।

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