एथेंस। दुनिया के सबसे ताकतवर लड़ाकू विमानों में से एक, राफेल (Rafale) की जासूसी का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। भारत के मित्र देश ग्रीस में चार चीनी नागरिकों को राफेल की तस्वीरें लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया है। इस घटना ने रक्षा और खुफिया हलकों में हड़कंप मचा दिया है और चीन की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश का पर्दाफाश किया है।
एयरबेस पर क्या हुआ था?
यह पूरी घटना ग्रीस के stratégic रूप से महत्वपूर्ण तनाग्रा एयरबेस (Tanagra Airbase) पर हुई। इसी एयरबेस पर ग्रीस की वायुसेना के फ्रांसीसी राफेल जेट तैनात हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, दो पुरुष, एक महिला और एक युवक, जो खुद को पर्यटक बता रहे थे, एयरबेस के पास संदिग्ध रूप से घूम रहे थे।
उनके हाथों में हाई-टेक कैमरे थे और वे लगातार एयरबेस और राफेल जेट्स की तस्वीरें खींच रहे थे। जब सुरक्षा गार्ड्स ने उन्हें रोका, तो वे भागकर एक पुलिया के नीचे छिप गए और वहां से भी तस्वीरें लेना जारी रखा। इसके बाद हेलनिक एयरफोर्स पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए चारों को हिरासत में ले लिया। उनके कैमरों की जांच करने पर दर्जनों संवेदनशील तस्वीरें मिलीं, जिन्हें देखकर ग्रीस की खुफिया एजेंसी भी हैरान रह गई।
चीन राफेल के पीछे क्यों पड़ा है?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर चीन राफेल की जासूसी क्यों कर रहा है? इसकी वजह है राफेल की बेजोड़ ताकत और दुनिया भर में बढ़ती उसकी मांग।
जब से दुनिया ने विभिन्न सैन्य अभियानों में राफेल की सटीकता, गुपचुप तरीके से दुश्मन के इलाके में घुसने की क्षमता और बिना किसी नुकसान के मिशन पूरा करने की ताकत देखी है, तब से चीन परेशान है। राफेल की सफलता ने सीधे तौर पर चीन के बनाए लड़ाकू विमानों, जैसे J-10 और FC-31 की बिक्री को प्रभावित किया है। कई देश अब चीनी विमानों की जगह राफेल को तरजीह दे रहे हैं। चीन को डर है कि अगर राफेल का दबदबा ऐसे ही बढ़ता रहा, तो उसका हथियार बाजार पूरी तरह ठप हो जाएगा।
यह सिर्फ एक घटना नहीं, एक वैश्विक साजिश है
ग्रीस में हुई यह गिरफ्तारी कोई अकेली घटना नहीं है। यह चीन के उस आक्रामक जासूसी नेटवर्क का हिस्सा है, जिसे वह पूरी दुनिया में फैला चुका है। चीन अपने सरकारी एजेंटों, आम नागरिकों और प्रॉक्सी संगठनों का इस्तेमाल करके दूसरे देशों की सैन्य और तकनीकी जानकारी चुराता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि चीन ने इस बार भारत के एक करीबी दोस्त, ग्रीस को निशाना बनाया है। यह दिखाता है कि चीन अपनी सैन्य तकनीक को बेहतर बनाने और अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।




