इंस्पेक्टर की हत्या के पांच दोषियों को उम्रकैद, 33 को सात-सात साल की सजा, कोर्ट का बड़ा फैसला

बुलंदशहर : बुलंदशहर के स्याना में हुए भीषण हिंसा मामले में आखिरकार छह साल, सात माह और 27 दिन बाद न्याय का डंका बजा है। शुक्रवार को कोर्ट ने इस बहुचर्चित मामले में 38 अभियुक्तों को दोषी करार दिया है। इनमें से पांच अभियुक्तों को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, जबकि 33 अन्य जानलेवा हमले समेत आईपीसी की 14 धाराओं में दोषी ठहराए गए हैं। इस फैसले ने उन सभी लोगों के दिलों को कुछ हद तक सुकून दिया है, जिन्होंने इस घटना में अपने प्रियजनों को खोया था और न्याय का इंतजार कर रहे थे।

क्या हुआ था 3 दिसंबर 2018 को? – यह घटना 3 दिसंबर 2018 की सुबह की है, जब स्याना की चिंगरावठी चौकी क्षेत्र के गांव महाब के जंगल में गोवंश के अवशेष मिले थे। इस खबर के फैलते ही बजरंगदल, विश्व हिंदू परिषद समेत अन्य संगठनों के पदाधिकारी और कार्यकर्ता ग्रामीणों के साथ गोवंश के अवशेष को एक ट्रैक्टर ट्रॉली में लादकर चिंगरावठी चौकी पहुंच गए। वहां उन्होंने जमकर बवाल किया।

हिंसा का तांडव और दो जानें – दोपहर होते-होते मामला इतना बिगड़ गया कि उग्र प्रदर्शनकारियों ने चिंगरावठी चौकी और वहां खड़े माल बरामदगी के वाहनों में आग लगा दी। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। इस भीषण बलवे में तत्कालीन स्याना कोतवाल सुबोध कुमार सिंह और चिंगरावठी गांव निवासी युवक सुमित कुमार की गोली लगने से दुखद मृत्यु हो गई थी।

जांच और लंबी कानूनी लड़ाई – पुलिस ने इस मामले में 4 दिसंबर 2018 को कई नामजद और अज्ञात आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी। कुल 44 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। हैरानी की बात यह है कि एफआईआर में हिंसा में मारे गए युवक सुमित कुमार को भी आरोपी बनाया गया था।

मामले की गंभीरता को देखते हुए बाद में एक एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन किया गया, जिसने जांच पूरी कर आरोपियों के खिलाफ न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की। प्रशांत नट, डेविड, राहुल, जॉनी और लोकेंद्र उर्फ मामा को हत्या का आरोपी बनाया गया था। योगेश राज समेत अन्य सभी पर जानलेवा हमला, डकैती, आगजनी, बलवा और धमकी देने समेत आईपीसी की 14 धाराएं लगाई गई थीं। हालांकि, सभी आरोपियों पर लगाई गई राजद्रोह की धारा सिद्ध नहीं हो सकी। मामले की सुनवाई के दौरान पांच आरोपी चंद्रपाल, अजय उर्फ दीवला, कुलदीप, आशीष उर्फ छोटे और ओमेंद्र की मृत्यु हो गई। एक आरोपी की पत्रावली अलग कर बाल न्यायालय भेज दी गई थी, जिसका मामला अभी तक विचाराधीन है।

यह फैसला दिखाता है कि भले ही न्याय मिलने में समय लगे, लेकिन अपराधियों को उनके किए की सजा जरूर मिलती है। यह उन सभी के लिए एक उम्मीद है जो कानून और व्यवस्था में अपना विश्वास बनाए रखते हैं।

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