भारत में शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम तक सीमित रखने की पुरानी परंपरा अब धीरे-धीरे बदल रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी-2020) ने शिक्षा को समग्र, बहुआयामी और विद्यार्थी-केंद्रित बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। इस नीति का एक महत्वपूर्ण पक्ष मानसिक स्वास्थ्य और खेलों को शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग मानना है। यह लेख इसी संदर्भ में मानसिक स्वास्थ्य और खेलों की भूमिका को उजागर करता है और बताता है कि किस प्रकार एनईपी-2020 विद्यार्थियों के समग्र विकास में सहायक सिद्ध हो रही है।
आज के प्रतिस्पर्धी युग में विद्यार्थी केवल अंक प्राप्त करने की दौड़ में लगे रहते हैं। यह दबाव, चाहे वह अभिभावकों का हो, शिक्षकों का हो या समाज का, बालकों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। तनाव, चिंता, अवसाद, आत्मविश्वास की कमी, सामाजिक अलगाव जैसे मानसिक विकार विद्यालयीय जीवन में ही प्रकट होने लगते हैं।

एनईपी-2020 इस गंभीर स्थिति को पहचानती है और स्पष्ट रूप से मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की बात करती है। यह नीति विद्यार्थियों के लिए परामर्श सेवाओं, जीवन-कौशल शिक्षा, योग, ध्यान, और खेलों के माध्यम से संतुलित मानसिक विकास की बात करती है।
खेल केवल शारीरिक व्यायाम नहीं हैं, बल्कि यह अनुशासन, टीमवर्क, आत्मविश्वास, सहनशीलता और नेतृत्व जैसी गुणों का भी विकास करते हैं। खेल मानसिक तनाव को कम करते हैं, मस्तिष्क में डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे रसायनों के स्राव को बढ़ाते हैं जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं।
एनईपी-2020 खेलों को मुख्यधारा की शिक्षा का हिस्सा मानती है। विद्यालयों को ‘खेल एक दिनचर्या’ के रूप में अपनाने का निर्देश दिया गया है। पाठ्यचर्या में खेलों को केवल विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि आवश्यक घटक के रूप में शामिल करने की बात कही गई है।

एनईपी-2020 के अनुसार शिक्षा को केवल बौद्धिक ज्ञान तक सीमित न रखते हुए भावनात्मक, सामाजिक, नैतिक और शारीरिक विकास पर जोर दिया गया है। इसमें नैतिक मूल्यों और जीवन कौशल की शिक्षा, समुदाय आधारित शिक्षा, विद्यालयों में प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की नियुक्ति, योग और ध्यान को पाठ्यक्रम में अनिवार्य करना, तथा ‘एक छात्र, एक खेल’ जैसे प्रयासों को प्रोत्साहन दिया गया है।
जब कोई विद्यार्थी मानसिक रूप से स्वस्थ होता है, तभी वह खेलों में भाग ले सकता है और जब वह खेलों में सक्रिय होता है, तो उसका मानसिक स्वास्थ्य बेहतर बना रहता है। यह एक सकारात्मक चक्र है। एनईपी-2020 इस चक्र को बनाए रखने के लिए अनेक रणनीतियाँ लेकर आई है। विद्यालयों में खेल और मनोरंजन आधारित गतिविधियों के माध्यम से विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने पर बल दिया जा रहा है।
एनईपी-2020 केवल नीतियों की बात नहीं करती, बल्कि यह सभी हितधारकों की जिम्मेदारी भी तय करती है। शिक्षक को केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि एक गाइड, मेंटर और भावनात्मक सहायक के रूप में भी तैयार किया जाना है। अभिभावकों को भी यह समझाने की आवश्यकता है कि केवल नंबर ही सफलता नहीं है, मानसिक संतुलन और खुशी भी जीवन के मूल तत्व हैं। समाज को मानसिक स्वास्थ्य के विषय में जागरूक बनाना और खेलों को करियर विकल्प के रूप में प्रोत्साहित करना भी आवश्यक है।

हालांकि एनईपी-2020 की नीति उत्कृष्ट है, परंतु इसे जमीन पर उतारने में कई चुनौतियाँ हैं। जैसे विद्यालयों में पर्याप्त संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित काउंसलर्स की अनुपलब्धता, खेल के प्रति पारंपरिक सोच, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सामाजिक कलंक आदि। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को प्रशिक्षण कार्यक्रम, जनजागरूकता अभियान, वित्तीय सहायता, और नीति की निरंतर समीक्षा जैसे कदम उठाने होंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन है। यह पहली बार है जब किसी नीति में मानसिक स्वास्थ्य और खेलों को विद्यार्थी जीवन के केंद्रीय हिस्से के रूप में स्वीकार किया गया है। यह नीति न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को समान महत्व देती है, बल्कि विद्यार्थियों को एक समग्र व्यक्तित्व के रूप में विकसित करने की दिशा में मार्गदर्शक बनती है।

आज की शिक्षा को ऐसे वातावरण की आवश्यकता है जहाँ विद्यार्थी बिना तनाव के सीख सकें, खुलकर खेल सकें और अपने भावनात्मक पक्ष को भी व्यक्त कर सकें। एनईपी-2020 इसी दिशा में एक आशा की किरण बनकर आई है। अगर इसे सही ढंग से लागू किया जाए, तो आने वाली पीढ़ियाँ न केवल विद्वान होंगी, बल्कि मानसिक रूप से सशक्त, संवेदनशील और सशक्त भारत की नींव बनेंगी।

