Bihar Election: जाति जनगणना से बदलेंगे विधानसभा चुनाव के सियासी समीकरण

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बिहार में 2023 में जातिगत जनगणना का मुद्दा सुर्खियों में आया था। नीतीश सरकार ने प्रदेश में जातिगत सर्वे कराया था। इस सर्वे के मुताबिक बिहार की आबादी में ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग मिलाकर 63 प्रतिशत हैं जबकि सवर्ण 15.52 प्रतिशत और अनुसूचित जाति-जनजाति 21 प्रतिशत से अधिक हैं।

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने है। विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारी शुरू कर दी है। इसी बीच विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेला है। मोदी सरकार ने देश में जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया है।

इस ऐलान के बाद बिहार की सियासत में भूचाल आ गया है। बिहार की राजनीति में जाति आधारित वोटबैंक हमेशा निर्णायक रहा है। ऐसे में मोदी सरकार का यह फैसला प्रदेश में जातिगत समीकरणों पर आधारित राजनीति को नया मोड़ दे सकता है। बता दें कि बिहार विधासनभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने विपक्ष से जातिगत जनगणना वाला मुद्दा ले लिया है।

दरअसल, कांग्रेस नेता राहुला गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव कई मौकों पर जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा चुके है। वहीं बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के इस फैसले को विपक्ष जहां अपनी जीत बता रहा है वहीं मोदी सरकार ने यह ऐलान कर विपक्ष का एक मुद्दा खत्म कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी ने 2019 तक ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदायों को साथ लेकर सामाजिक गठबंधन तैयार किया था।

लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में यह गठबंधन बीजेपी के हाथों से खिसक गया। इसकी असली वजह राज्यवार एनडीए को हुए नुकसान से समझा जा सकता है। दरअसल, 2019 में बिहार में अन्य ओबीसी समुदाय का एनडीए को 50 प्रतिशत वोट मिला था, लेकिन 2024 में यह घटकर 29 प्रतिशत हो गया। एनडीए को सीधा 21 प्रतिशत वोट का नुकसान हुआ। इसी तरह प्रदेश में कुर्मी कोयरी वर्ग का समर्थन 56 प्रतिशत से घटकर 44 प्रतिशत हो गया।

बताया जाता है कि ये दोनों जातियां बीजेपी का समर्थन करती थी। बिहार में 2023 में जातिगत जनगणना का मुद्दा सुर्खियों में आया था। नीतीश सरकार ने प्रदेश में जातिगत सर्वे कराया था। इस सर्वे के मुताबिक बिहार की आबादी में ओबीसी और अति पिछड़ा वर्ग मिलाकर 63 प्रतिशत हैं जबकि सवर्ण 15.52 प्रतिशत और अनुसूचित जाति-जनजाति 21 प्रतिशत से अधिक हैं।

जातिगत जनगणना से बिहार में दलित नेतृत्व की मांग तेज होने की संभावना हो सकती है। बिहार में दलित समुदायों का एक बड़ा हिस्सा यह महसूस करता है कि उनकी आबादी के अनुपात में प्रमुख राजनीतिक नेतृत्व में उनकी हिस्सेदारी कम है। नीतीश कुमार (ओबीसी), तेजस्वी यादव (यादव), और बीजेपी के सवर्ण-ओबीसी नेताओं के वर्चस्व के बीच दलित नेताओं को शीर्ष भूमिका में कम देखा जाता है। 

जातिगत जनगणना के आंकड़े समुदायों को उनकी संख्या के अनुपात में संसाधनों, आरक्षण और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग उठाने का आधार प्रदान करते हैं। इससे जितनी संख्या, उतनी हिस्सेदारी का नारा और मजबूत होगा।बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जातिगत जनगणना का असर पड़ेगा।

मोदी सरकार का यह फैसला बिहार में ओबीसी और ईबीसी वोटरों को साधने की एक रणनीति का हिस्सा है। पिछले दो दशकों में बीजेपी ने MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण से इतर अति पिछड़ा वर्ग में अपनी पैठ बनाई है। जाति जनगणना का वादा इन वोटरों को यह संदेश देता है कि केंद्र सरकार उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध है। 

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