गाज़ीपुर : सुबह के आठ बजे थे। गाज़ीपुर की जिला जेल का गेट खुला और दो छोटी बच्चियाँ, कंधे पर स्कूल बैग टाँगे, चेहरे पर एक अनोखी मुस्कान लिए बाहर निकलीं। यह कोई सामान्य सुबह नहीं थी, बल्कि जेल के इतिहास में दर्ज होने वाला एक ख़ास दिन था। जेल अधिकारियों ने बच्चियों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं और अपनी कार से उन्हें उनके नए स्कूल, सरस्वती विद्या मंदिर, के लिए रवाना किया।

यह पल इसलिए ऐतिहासिक था क्योंकि गाज़ीपुर जिला जेल के इतिहास में पहली बार किसी सज़ायाफ़्ता कैदी की बच्चियों को जेल से बाहर कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने का मौका मिला है।

मुश्किलों से भरा बचपन, अब शिक्षा की रोशनी

वर्तमान में, गाज़ीपुर जिला जेल में तीन महिला कैदियों के पाँच बच्चे अपनी माताओं के साथ रह रहे हैं। इनमें से सबुआ निवासी एक महिला अपने पति, सास, ससुर और देवर सहित अपने पूरे परिवार के साथ दहेज हत्या के एक मामले में डेढ़ साल से बंद है। इसी महिला की दो बेटियाँ हैं, जिनकी उम्र चार और पाँच साल है, और एक तीन साल का बेटा भी है।

बाल कल्याण समिति के सुझाव पर, जेल प्रशासन ने इन दोनों बच्चियों का दाखिला एक प्रतिष्ठित कॉन्वेंट स्कूल में करवाया है। एक बच्ची यूकेजी में पढ़ेगी और दूसरी केजी क्लास में। अब जेल प्रशासन की देखरेख में इन बच्चियों को रोज़ाना स्कूल भेजा जाएगा।

जेलर शेषनाथ यादव और डिप्टी जेलर राजेश कुमार ने बताया कि सभी ज़रूरी औपचारिकताएँ पूरी होने के बाद, जेल में रह रहे अन्य बच्चों का दाखिला भी करवाया जाएगा। उन्होंने ज़ोर दिया कि पढ़ाई का विशेष महत्व है, खासकर ऐसे बच्चों के लिए जिन्हें एक अलग माहौल में रहना पड़ रहा है।

टिफिन में ‘माँ का प्यार’: पराठे से गुझिया तक

स्कूल के पहले दिन, दोनों बच्चियाँ बेहद खुश नज़र आईं। जेल प्रशासन उनकी सुविधा और सुरक्षा का विशेष ध्यान रख रहा है। उनके टिफिन में खाने के लिए पराठा, सब्ज़ी, गुझिया, बिस्किट, चॉकलेट और थर्मस में आरओ का पानी दिया गया। स्कूल में भी उन्होंने सामान्य बच्चों की तरह खेला-कूदा और पढ़ाई भी की।

जेल अधीक्षक जगदंबा प्रसाद दुबे ने इस पहल को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, “गाज़ीपुर जिला जेल के इतिहास में यह पहला मौका है, जब किसी सज़ायाफ़्ता कैदी की बच्चियों को पढ़ने के लिए बाहर कॉन्वेंट स्कूल में भेजा गया है। इससे समाज में एक बहुत अच्छा संदेश जाएगा।

यह कदम न केवल इन बच्चियों के भविष्य के लिए एक नई उम्मीद है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्याय प्रणाली मानवीय पहलुओं को भी समझती है। यह एक छोटा-सा क़दम है, लेकिन इसका प्रभाव गहरा और दूरगामी हो सकता है, जो इन मासूम जिंदगियों को एक बेहतर कल दे पाएगा।

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