बिहार के नालंदा ज़िले में एक ऐसा गांव है, माड़ी, जो आज के दौर में गंगा-जमुनी तहज़ीब की सबसे खूबसूरत मिसाल पेश कर रहा है। यह बात सुनकर आप शायद हैरान रह जाएं, लेकिन इस गांव में एक भी मुसलमान परिवार या व्यक्ति नहीं है, फिर भी यहां एक 100 साल पुरानी मस्जिद है, जिसकी देखभाल पूरी शिद्दत से हिंदू समुदाय के लोग करते आ रहे हैं।

आज जहां धर्म के नाम पर नफ़रत की दीवारें खड़ी हो रही हैं, वहीं माड़ी गांव के हिंदू भाइयों ने इंसानियत और एकता की एक नई इबारत लिखी है। उनके लिए यह मस्जिद केवल एक ढांचा नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है, जिसे वे किसी मंदिर की तरह ही पूजते और संवारते हैं।

अजान की रिकॉर्डिंग, नमाज़ का स्पीकर: आस्था का अद्भुत संगम

माड़ी गांव से मुस्लिम परिवार कई साल पहले पलायन कर चुके हैं, लेकिन उनकी छोड़ी हुई यह मस्जिद गांव के हिंदुओं ने कभी वीरान नहीं होने दी। गांव में 100 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है, और वही मस्जिद की साफ़-सफाई से लेकर हर तरह की देखरेख करते हैं।

सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि इस मस्जिद में पांचों वक्त की अजान और नमाज़ भी होती है! गांव में कोई मुस्लिम न होने के बावजूद, यहां के हिंदू भाई पेन ड्राइव और माइक का इस्तेमाल करते हैं। अजान और नमाज़ को रिकॉर्ड करके रखा गया है, और जब भी अजान या नमाज़ का वक़्त होता है, तो गांव के लोग स्पीकर पर उस रिकॉर्डिंग को चला देते हैं। इस तरह, मस्जिद की रौनक और अजान की परंपरा सालों से कायम है।

शादी की बारात से लेकर बीमारों के इलाज तक, आस्था का केंद्र है ये मस्जिद

माड़ी गांव के लोगों की इस मस्जिद से गहरी आस्था जुड़ी हुई है। गांव में जब भी किसी की शादी होती है, तो बारात यहीं से निकलती है, और शादी के बाद नया जोड़ा सबसे पहले इसी मस्जिद में आकर माथा टेकता है। दूल्हा-दुल्हन अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत यहां से आशीर्वाद लेकर करते हैं। मस्जिद के पास बनी एक मजार पर भी ये नवविवाहित जोड़े चादर चढ़ाते हैं, जिसकी देखरेख भी हिंदू समुदाय ही करता है।

इतना ही नहीं, इस मस्जिद को लेकर एक और अनोखी मान्यता है। माना जाता है कि मस्जिद में एक सफेद रंग का पत्थर रखा हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि जब भी किसी को शरीर के किसी हिस्से में, खासकर चेहरे पर, सूजन या कोई परेशानी होती है, तो इस पत्थर को घिसने से सूजन खत्म हो जाती है। यह पत्थर भी लोगों की आस्था का एक बड़ा केंद्र है।

धरोहर और जिम्मेदारी: एक खूबसूरत मिसाल

ग्रामीणों ने बताया कि माड़ी में पहले मुस्लिम परिवार रहते थे, जो समय के साथ बिहार के अन्य हिस्सों या दूसरे जिलों में जाकर बस गए। लेकिन उन्होंने अपनी विरासत के रूप में जो मस्जिद छोड़ी, उसे गांव के हिंदुओं ने पूरी ईमानदारी और सम्मान के साथ संभाला हुआ है।

मस्जिद के फर्श और दीवारों को चमकाए रखने के लिए गांव के लोग रोज़ इसकी सफाई करते हैं। वे इसे अपनी ही धरोहर मानते हैं, जिसकी देखरेख करना उनकी ज़िम्मेदारी है, और इस ज़िम्मेदारी को वे बखूबी निभा भी रहे हैं। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि यह मस्जिद उनके पूर्वजों के समय से स्थापित है, और वे इसे एक अनमोल धरोहर के रूप में संजोकर रख रहे हैं।

यह माड़ी गांव भारत की उस विविधता में एकता की भावना का जीता-जागता प्रमाण है, जो आज के समय में शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। यह हमें याद दिलाता है कि धर्म से पहले इंसानियत आती है, और प्रेम व सद्भाव से बड़ी कोई शक्ति नहीं।

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